देवर्षि नारद से सीखे पत्रकारिता

वर्तमान समय मीडिया और इंटरनेट का है। पहले हमे किसी भी घटना की जानकारी घटना के सप्ताह तो कभी महीने बाद मिलती थी, फिर आया समाचारपत्रों का दौर जब हमे घटित जानकारी अगले दिन प्राप्त होने लगी। लेकिन जैसे जैसे मानव ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विस्तार किया ये अंतराल घट गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस अंतराल को पूरा खतम ही कर दिया ।अब हम घटना का लाइव प्रसारण टेलीविजन पर,मोबाइल के माध्यम से मिनटों में प्राप्त कर लेते हैं।

घटना और दर्शक के बीच कड़ी का कार्य करना ही पत्रकार का धर्म है ।पत्रकार जिसमे निष्पक्षता हो, सत्य बोलने का साहस हो , जो उचित मार्गदर्शन करे , जनता के हितों की रक्षा करे।ये सारे गुणों को समाहित किए है देवर्षि नारद जिन्हें विश्व का पहला पत्रकार या पत्रकारिता का पितामह भी कहा जाता है। महाभारत युद्ध के बाद जब सम्राट युधिष्ठिर का राजतिलक होता है तब देवर्षि नारद ने जो प्रश्न किए उनमें पत्रकारिता के सारे तत्व समाहित है अर्थात् क्या, कब ,कैसे, क्यों, किसका । इसमें एक राजा के दायित्व ,अधिकार ,मर्यादा, निजी जीवन, सामाजिक सरोकार के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया। युधिष्ठिर के इस साक्षात्कार में नारद जी ने सम्राट को सदैव जनहित का ध्यान रखने ,लोकप्रियता बनाए रखने, सत्य बोलने वाले और निंदा करने वालो का भी सम्मान करने , चापलूसों से दूर रहने ,सदा ही जनता के साथ जुड़े रहने,देश की सीमाओं की सुरक्षाओ के साथ आंतरिक सुरक्षा को मजबूत बनाए रखने, सुदृढ़ सेना के गठन के साथ सुदृढ़ गुप्तचर विभाग,न्याय व्यवस्था कुशल बनाने , विदेशो से संबंध बनाते समय देशहित सर्वोपरि रखने आदि अनेक प्रश्न पूछे गए जो उनके आदर्श पत्रकार होने के गुणों को प्रदर्शित करती है।

पत्रकारिता फोटो क्रेडिट:) यंग भारत

न्यूज रूम या ऑफिस में बैठकर पत्रकारिता का कोई अर्थ ही नही है।एक पत्रकार को टेबुलाइड जर्नलिज्म (ऑफिस में टेबल पर बैठ कर ही समाचार लिख और बना देना ) जैसे विसंगति से बचना चाहिए ।नारद जी का जीवन हर पत्रकार का आदर्श होना चाहिए। वे तीनों लोको में भ्रमण करते थे और वहा के निवासियों के जीवन की जानकारी रखते थे। एक पत्रकार को भी समाज में विचरण कर जनता से परिचित होना चाहिए ताकि वो उन्हें न्याय दिला सके। समाचार का अंग्रेजी रूप है न्यूज (NEWS) अर्थात् एक पत्रकार के पास भी उत्तर ,दक्षिण ,पूरब और पश्चिम सारे दिशाओं कि खबरे होनी चाहिए जो की समाज में भ्रमण करने के बिना संभव नही है।गांधी जी भी जब 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे और राजनीति में आने की सोच रहे थे ,तब उनके गुरु गोपालकृष्ण गोखले ने उन्हें सबसे पहले देश की नब्ज को समझने का सुझाव दिया ।गांधी जी देश की हालत को समझने के लिए भारत भ्रमण की योजना बनाई ।यही कारण है कि गांधी जी देश की नब्ज को आसानी से समझ सके और अधिकाधिक लोगों के साथ जुड़ सके।

पत्रकार के रूप में नारद जी के समान ही एक अन्य महत्वपूर्ण गुण को अपनाया जा सकता है वो है देव या फिर क्रूर राक्षस सभी को मुंह पर सत्य बोलने की हिम्मत रखना चाहे स्थिति आपके कितनी ही विपरीत क्यों न हो या फिर वो कितने ही प्रभावशाली व्यक्ति के सम्मुख ही क्यों न बैठा हो। एक पल के लिए नग्न सच को सुन कर चाहे देव या राक्षस उसपर क्रोधित अवश्य होते थे किंतु बाद में उसपर विचार भी जरूर करते थे । बाद में उसी सत्य को आधार मान कर निर्णय भी लिया करते थे । एक पत्रकार को यह बिलकुल ही नही सोचनी चाहिए की उसके सत्य कथन से कौन नाराज या प्रसन्न हो रहा है केवल जनहित और सार्थक जो देशहित में हो उसपर ही केंद्रित होना चाहिए एवं अपने पत्रकारिता धर्म का अनुसरण करना चाहिए । भारतीय परिपेक्ष में यह देखे तो भारतीय पत्रकारिता और मीडिया कुछ संस्थान सरकार की गुणगान में ही लगे रहते है। जहा आज की सदी विज्ञान और टेक्नोलॉजी की बात कर रही है तो वही भारतीय मीडिया धर्म ,जातिवाद ,मंदिर मस्जिद से ऊपर नही उठ पाई है। ऐसी पत्रकारिता सामाजिक विघटन को निमंत्रित करती है।

महर्षि वाल्मीकि को नारद जी ने रामायण की रचना करने को प्रेरित किया उन्हें यह बतलाया की उनका चयन ब्रह्मा जी द्वारा इसके लिए किया गया । एक ऐसे व्यक्ति के चरित्र का वर्णन करने को कहा गया जिसके द्वारा संसार का कल्याण हो, मानव उसके शिक्षा को ग्रहण करे , उसके द्वारा दिए गए उपदेश धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष प्रदान करने में मदद करे। नारद जी ने पक्षीराज गरुड़ का अहंकार भी तोड़ा और उसका मार्गदर्शन भी किया ।नारद जी को न केवल देवताओं ने बल्कि असुरों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है ।साथ ही समय समय पर उनसे परामर्श भी लिया है।

सामाजिक सरोकार और सार्वजनिक हित से जुड़कर ही पत्रकारिता सार्थक बनती है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है ।चौथा स्तंभ का दर्जा उसने ऐसे ही प्राप्त नहीं किया है। सामाजिक सरोकार के प्रति पत्रकारिता के महत्व को देखते हुए समाज ने उसे यह दर्जा दिया है। कोई भी लोकतंत्र तभी सशक्त और सुखी होगा जब पत्रकार अपने पत्रकारिता धर्म व दायित्व को नारद मुनि के समान अपने सार्थक भूमिका को निभाए । समाज और प्रशासन के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की ईमानदार भूमिका निभानी होगी । अगर हर पत्रकार नारद के गुणों के अनुरूप आचरण करे तो कोई कारण नहीं भारत में आज हिंदी पत्रकारिता जिन आरोपों का सामना कर रही है ,भविष्य में उससे बचा न जा सके।

पढ़ने के लिए धन्यवाद । (अतुल कुमार)

Write a comment ...

Atul Kumar

Show your support

Knowledge is power....you can achieve and you can serve the society by using yr wisdom which comes from study only.. Always try to help those students or needy Poor people or students who have talent but not have way to make into a way ..Be way for that guys ...Be A little drop of that oceans(students)..

Write a comment ...